यह कहानी है आदिवासी परिवार में जन्में श्री गौतम मीणा* की जो सलूम्बर क्षेत्र कि झल्लारा पंचायत समिति के बोरी गाँव के रहने वाले हैं। इनकी माता की मृत्यु तभी हो गई थी जब वे मात्र 5 वर्ष के थे और पिता का साया भी आज से 2 वर्ष पूर्व उठ गया था। गरीबी व तंग आर्थिक हालातों के चलते गौतम जी पढ़-लिख नहीं पाया। परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते उन पर जिम्मेदारियों का बोझ भी अधिक था।ऐसे दयनीय हालत में उनके पिता ने उन्हें मात्र 14 वर्ष की उम्र में मार्बल फिटिंग ठेकेदार के साथ अहमदाबाद में मजदूरी के लिए भेज दिया।
कर्ज तले दबे हुए पिता ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए इनकी 17 वर्ष की उम्र में ही शादी करवा दी। अहमदाबाद में रहते हुए भी इनकी आमदनी कोई ज्यादा नहीं थी। इन्हें जिस दिन काम मिलता उस दिन 300 रुपये प्रति दिन के हिसाब से मजदूरी मिल जाती थी। खर्चा-खाता, भाडा-तोड़ा निकाल कर उनके पास महीने के 2000 रुपये भी मुष्किल से बचा पाते थे। शहर की जिन्दगी दूर से चमकदार दिखती है मगर वहां मजदूरों के हालात बद से बदतर बने हुए है।
अब तक तो दिन जैसे-तैसे निकल रहे थे लेकिन एक वर्ष पूर्व उनकी जिन्दगी में भूचाल आ गया जब उन्हें अहमदाबाद में काम करते हुए पता चला कि उन्हें एक भंयकर बीमारी टी.बी. ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। दिन भर धूल, मिट्टी व पत्थरों में काम करने और पौष्टिक भोजन के अभाव के कारण टी.बी. ने उन्हें अपना शिकार बना लिया। उन्हें यह समझते देर न लगी कि यह वहीं बीमारी है जो उनके बड़े ताऊ को हुई थी और इस बीमारी ने उनको मौत का शिकार बना लिया था।
गौतम हालात से और भी मुकाबला कर लेते लेकिन उनके पैरों तले जमीन खिसक गई जब उनके ठेकेदार ने इलाज करवाने से इन्कार कर दिया और उन्हें गांव जाने का टिकट थमाते हुए यह कहा कि “शहर में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है तू गांव ही चला जा वहीं अपना इलाज करवा लेना। वहाँ इलाज सस्तें में हो जाएगा।” मजबूर और हालातों में अकेला गौतम अब वापस गाँव लौट आया।
जब गौतम गांव आए तो उनकी जेब में एक फूटी-कौड़़ी भी नहीं थी। ऊपर से अब वह परिवार पर बोझ बन गए थे। ऐसे हालात में कोई भी उनकी आर्थिक सहायता करने के लिए तैयार नहीं था। जमाई और बेटी की यह दयनीय हालात इनके ससुर से देखी नहीं गई और उन्होंने दस हजार रूपये इलाज के लिए उन्हें उधार दिए।
पैसों का इंतजाम होने के बाद गौतम जी के परिवार ने इनका इलाज करवाना शुरू किया। इन्होंने इनका इलाज निकटतम् भबराना में सरकारी दवाखाने में तथा सलूम्बर में प्राईवेट क्लिनिक पर करवाया लेकिन स्वास्थ्य में कुछ सुधार नहीं हुआ। यहाँ तक की किसी ने बताया की डूंगरपुर जिलें में स्थित गलियाकोट वाले बाबा के हाथों से गले में सूत की ताँती बंधवाकर आषीर्वाद लोगे तो बीमारी एकदम से दूर हो जाएगी। गौतम जी के परिवार ने यह भी किया और उन्हें दो बार गलियाकोट ले गए। लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ उल्टे उनके ससुर से उधार लिए पैसे भी सब खत्म हो गए।
इलाज के लिय इतनी भाग-दौड़ के बाद अब वह थक चुके थे और उन्होंने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। खाट पर पड़े-पड़े अब वह अपनी जिन्दगी की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहे थे। तभी एक दिन उनके गांव में मानपुर अमृत क्लिनिक की टीम स्वास्थ्य पर जानकारी व षिक्षण प्रदान करने आई। टीम ने उनकी यह हालात देखकर उन्हें हौसला बंधाया, विष्वास दिलाया और उन्हें उचित परामर्ष देते हुए मानपुर क्लिनिक से इलाज लेने को कहा।अमृत टीम ने तुरन्त क्लिनिक की एम्बुलेंस को फोन लगाया और अमृत क्लिनिक मानपुर पहुचा दिया
क्लिनिक मानपुर पर आने के बाद नर्स द्वारा गौतम जी को उचित चिकित्सिय परामर्ष दिया गया। उन्हें बताया गया कि टी.बी. सामान्यतः फेफड़ो में होती है इसमें रोगी को छाती व कफ की जाँच करवानी होती है। इस रोग के उपचार के लिए जो इन्जेक्षन और दवाइयाँ दी जायें उन्हें समय पर अवष्य लेनी चाहिये। टी.बी. का ईलाज लम्बा चलता है। इसे आलस्य या लापरवाही के कारण बीच में बंद नही करना चाहिये। जिस स्तर का उन्हें टी.बी. है इससे पूर्णतया रोगमुक्त होने में कम से कम छः माह लगते हैं। इसमें रोगी को प्रर्याप्त आराम, पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। अपने बलगम को किसी बर्तन में थूकना चाहिए व खाँसते वक्त मुँह पर रूमाल रखना चाहिए क्योकि यह रोगी के सम्पर्क से दूसरों को भी हो सकती है।
अमृत क्लिनिक मानपुर के स्टाफ ने उनसे बहुत आत्मीयता के साथ बात की व उचित परामर्ष दिया। शायद इस वक्त उन्हें दवा से ज्यादा दुआ और हौसले की जरूरत थी और एक गजब का विष्वास उन्हें यहां क्लिनिक स्टाफ से मिल गया था। गौतम अब समय पर दवाई लेते क्लिनिक स्टाफ द्वारा भी उन्हें लगातार समय-समय पर फॉलो-अप किया जाने लगा। हर माह को क्लिनिक पर आयोजित होने वाले स्वास्थ्य दिवस की बैठक में भी वह हमेंषा जाते थे और इस बैठक में उन्हें उचित चिकित्सिय परामर्ष, दवाई व पोषण संबंधित जानकारी प्रदान की जाती थी। इस प्रकार उन्होंने 6 माह की लम्बी लड़ाई के बाद टी.बी. मुक्त होते हुए उस पर विजय प्राप्त की।
गौतम की लड़ाई यहाँ खत्म नहीं हुई थी उसके सिर पर अभी भी अपने ससुर का दस हजार रुपये का बकाया कर्जा चुकाने की चुनौती थी। ऐसे में अमृत क्लिनिक मानपुर ने उन्हें सहायता प्रदान करते हुए बीमारी के दौरान हुए कर्जे से मुक्ति के लिए अपनी साथी संस्थान “राजस्थान श्रम सारथी एसोसिएषन” से सम्पर्क करवाया। यहाँ से उन्होंने किष्तों में कुल नौ हजार का लोन लिया। भेरूलाल जी अब स्वास्थ्य हो गए है और उन्हो ने दिसम्बर 2018 में अपनी पहली किष्त की राषि भी जमा करवाई है। गौतम जी बताते है कि “अब मैं पूर्ण स्वास्थ्य हो गया हूँ मै गांव में ही 3 व्हीलर ऑटो चलाता हूँ। दैनिक मुझे 500 रुपये की आमदनी हो जाती है मैनें अपना सारा कर्जा चुका दिया है। अमृत क्लिनिक मानपुर की वजह से आज मुझे जिन्दगी दुबारा मिल गई है।”
*Name changed to Protect Privacy
By Rahul Shakdwepiya, Basic HealthCare Services