प्रवासियों के लिए कोरोना का अर्थ है कोई रोजगार ना रहा।
लॉक डाउन के कारण पूरे देश में आज आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई है। इस कठिन दौर में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों के प्रवासियों को जो कि रसोई कार्य, कपड़ा व्यवसाय, फेक्ट्री वर्कर व कन्स्ट्रक्शन कार्य आदि में मजदूरी का काम करते है, उनको अपने रोजमर्रा के जीवन में दरिद्रता एवं जीवकोपार्जन के लिए वंचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। दक्षिणी राजस्थान जो की आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, इसमें शिक्षा का स्तर हमेशा से ही कमजोर रहा है। इस क्षेत्र के ज्यादातर लोग अकुशल काम करते हुए दैनिक रोजगार पर ही काम करते है। पिछले दो दशक से हम इस क्षेत्र में प्रवासी परिवारों को बेहतर, सुरक्षित एवं गरिमामय बनाने की ओर प्रयासरत है। लॉक डाउन के इस दौर में हमने अतिवंचित प्रवासी परिवारों को राशन वितरण किया इस दौरान कई प्रवासियों की दैनिक जीवन की समस्याओं से रूबरू होने का अवसर मिला। प्रस्तुत है आपके समक्ष ऐसे ही एक प्रवासी परिवार की कहानी।
गौतमलाल मीणा* सलूम्बर लॉक के दोबडिचा गांव के रहने वाले है और उदयपुर शहर में कन्स्ट्रक्शन साईटों पर 250 रुपय दैनिक मजदूरी पर खुली मजदूरी करते है। इनके जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन जब से प्रदेश में लॉक डाउन लागू हुआ तब से इनका दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त एवं कठिनाईयों से भरा हो गया है।
कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए सरकार के तीन सप्ताह के लॉक डाउन की घोषणा वाले दिन पूरी रात मुझे नींद नही आई क्योकि मुझे मेरे परिवार की चिन्ता सताए जा रही थी। अगली सुबह जल्दी उठकर मैं पैदल ही अपने साथियों के साथ गांव की ओर निकल पड़ा जैसे-तैसे 100 किलोमीटर दूर अपने गांव पहुंचा। -गौतमलाल
गौतमलाल के परिवार में पत्नी रोडकी* के अलावा 5 बच्चे है एवं इनका परिवार बी.पी.एल. परिवार की श्रेणी अंतर्गत आता है। ये अपने केलू पोश कच्चे मकान में रहते है। सरकार की और से लाईट कनेक्शन व उज्ज्वला गैस का लाभ अब तक उन्हंे नही मिल पाया है। घर के लिए कोई बचत नहीं है और ना ही कोई सामाजिक सुरक्षा का लाभ इन्हें मिल रहा है। दूर जंगल में इनके पास लगभग 1 बीधा जमीन है जिसमें प्रति वर्ष 1 क्लिंटल गेंहूं पैदा हो जाता है। रोडकी बाई खेती-बाडी के साथ-साथ नरेगा में काम पर भी जाती है जिससे परिवार को थोड़ा सहारा मिल जाता है। आदिवासी बाहुल्य दक्षिणी राजस्थान के इस इलाके में 80 प्रतिशत पुरूष अपने घर परिवार को छोड कर प्रवास पर जाते है महिलाएं खेती-बाडी एवं नरेगा में कार्य करती है। राशन वितरण के दौरान हमने 7 गांवों के परिवारों को नजदीक से जाना इन परिवारों के पास मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इनके घरों में ज्यादा राशन संग्रह भी नहीं होता, यह रोज कमाने व रोज खाने वाले लोग है। 5 किलो आटा, आधा लीटर तेल, पाव भर चना दाल, थोड़ी-बहुत नमक, हल्दी, मिर्च इनके लिए सप्ताह भर पर्याप्त है। हमने गांवों में देखा की गांवों में किराना व्यापारी भी समय इन भोले-भाले लोगों को राशन सामग्री महंगी दर पर बेच रहे है। नकद राशि न होने के कारण यह लोग महंगी दर पर राशन खरीदने के लिए मजबूर है।
हमे राशन खरीदने नजदीकी गांव बेडावल जाना पड़ता है। किराना व्यापारी एक रुपय की उधार नहीं करते, ऊपर से लूट भी रहे है। 90 रुपय लीटर मिलने वाली तेल की बोतल इन दिनों 130 रुपय मे, 30 रुपय किलो मिलने वाली दाल 80 रुपय किलो व 30 रुपय किलो मिलने वाले चावल इन दिनों 70 रूपय किलो मिल रहे है। व्यापारियों ने सभी जरूरत की चीजों के मनमाफिक भाव तय कर दिए है। -गौतमलाल
लॉक डाउन के इस समय में इनके कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे इनके पास नकद रुपय न होना, घर में राशन उपलब्ध न होना, बैक तक नहीं पहुँच पाना, बैंक में खाता नहीं होना बैक से पैसा ना निकलवा पाना, ठेकेदार के पास मजदूरी भूगतान अटका होना, परिवार के मुखिया या सदस्य का प्रवास स्थल पर फंसे हुए होना, राशन कार्ड न होना अन्य जरूरत के दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, भामाशाह कार्ड में जटिलता होना आदि कारणों से इनको पग-पग पर मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।
अंतिम बार मुझे मेरी मजदूरी का भुगतान हुए डेढ माह से अधिक हो गया है मुझे नहीं पता कि अब और कितना समय लगेगा ठेकेदार से अपना बकाया पैसा वसूलने में। मुझे यह बताते हुए बहुत शर्म आ रही है लेकिन मेरे पास मात्र 200 रुपय बचे है ऐसे में मुझे समझ नही आ रहा कि मै लॉक डाउन के इस दौर में अपने परिवार का गुजारा कैसे करूँगा।- गौतमलाल
लॉक डाउन के साथ ही सरकार ने राहत भरी घोषणा भी की थी लेकिन देखने में आ रहा है कि अभी तक इसे सही ढ़ग से लागू नहीं किया है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में तो योजनाएं पहुंचने में बहुत समय लग जाता है। हमने 7 गांवों का दौरा किया इन गांवो में लोगो को राशन का गेंहूँ तक नहीं मिला है। स्थानिय प्रशासन मात्र शहरों से गांव लौटे हुए प्रवासियों की पहचान करने में लगे हुए है वे इन्हें क्वारेंनटाइन रहने की सलाह दे रहे है पर उनके राशन-पानी की चिंता किसी को नहीं है।
सरपंच ने कहा है कि हर राशन कार्ड धारी को राशन के रूप में 20 किलों गेंहूँ दिए जाएंगे लेकिन मेरे परिवार को अब तक स्थानीय प्रशासन की ओर से एक दाना भी नहीं मिला है। हाँ, मजदूरों के हित के लिए काम करने वाली एक संस्था ने मुझे 2 सप्ताह की राशन सामग्री उपलब्ध करवाई है। सरपंच जी कहते है कि सरकार ने सबके खाते में 1000 रुपय की धन राशि जमा करवाई है लेकिन पंचायत मुख्यालय पर स्थित बी.सी. सेन्टर यहाँ से 10 किलामीटर दूर है। सार्वजनिक परिवहन के साधन भी बन्द है कैश निकालना भी जटिलताओं से भरा है। इस बात की कोई गांरटी नहीं कि 10 किमी दूर पैदल जाने के बाद भी मुझे बैक से पैसा मिल जाएगा।- गौतमलाल
सरकार ने आनन-फानन में लॉक डाउन जैसा कठोर निर्णय तो ले लिया हो लेकिन इस निर्णय ने आदिवासी प्रवासियों को करो या मरों की स्थिति में ला खड़ा कर दिया है। तत्कालीन हालात को देखते हुए मुझे लगता है कोरोना वायरस से पहले इन आदिवासियों को भूख मार देगी। लॉक डाउन का यह पाँच सप्ताह का समय इन दिहाड़ी मजदूरों के लिए बहुत लम्बा है, यह समय इनके लिए कष्टों व अभावों से भरा है। इस कठिन समय में सरकार व संस्थाओं को मिलकर इन प्रवासियों की मदद करने की जरूरत है।
*व्यक्ति की निजता को बनाए रखने के लिए नाम बदला गया |
-By Rahul Shakdwepiya, Executive Outreach at Basic HealthCare Services