
मेरा ध्यान रामलाल की आँखों की ओर गया। एक, क्योंकि वे सुनहरे-हरे रंग की थी, जो कि कुछ अलग ही हैं। दूसरा, क्योंकि वे जल्द ही लाल हो गई। यह लाली भावनाओं की थी, व्यथा की भावना की, उपाश्रित होने की व्यथा की, मानपुर के उपाश्रित की, सलूंबर के मानपुर की – जो उदयपुर से दो घंटे की दूरी पर है।
शुरू से ही इस बैठक की एक अलग दिशा थी। (वास्तविक रूप में भी) यह बैठक मानपुर गाँव में हुई, जो कर्क रेखा से बहुत दूर नहीं है)।
यह एक व्यक्ति था जो अपने कोमल पक्ष के साथ तालमेल बिठाए था। यह उसकी बात करने की शैली को प्रभावित करता प्रतीत हो रहा था जो कुछ विस्फोटक सी थी। उसकी अभिव्यक्ति में जोश (उत्साह के लिए उर्दू शब्द) था जो मुझे उस व्यथा के दूसरी तरफ ले आया। यिन से येंग (यिन और येंग एक चीनी सिद्धांत है, जिसके अनुसार परस्परी विपरीत स्थितियों में भी आपसी जुड़ाव होता है) तक, रामलाल ने दोनों को सहजता से निभाया।
लेकिन उसकी अजीबोग़रीब स्थितियाँ यहीं खत्म नहीं होती।
उसके गाँव में रोजगार मिलना लगभग असंभव था और मजदूरी लगभग नहीं के बराबर मिलती थी। फिर भी, अपने पुरुष साथियों के विपरीत, जो जीवनयापन करने के लिए शहर चले गए, रामलाल मीणा ने अपने जन्म और पूर्वजों के गांव मानपुर से बाहर कदम रखने से इनकार कर दिया। उसे गाँव में व्यावसायिक प्रशिक्षण (जैसे साइकिल मरम्मत) लेने की भी चाहत नहीं थी। इससे भी अजीब बात यह थी कि वह स्कूल से आगे नहीं पढ़ सका क्योंकि अपने पांच भाई-बहनों में, वह स्वयं ही बिस्तर पर पड़ी अपनी माँ की देखभाल करने वाला अकेला व्यक्ति था। उन पाँच वर्षों के दौरान जब उसने अपनी माँ की देखभाल की, तब एकमात्र अन्य व्यवसाय जो उसे समझ आया वह था सुनना।
रामलाल स्वयं को छोटी-छोटी बैठकों के किनारे बिठा देता था – पेड़ों के नीचे, हैंडपंपों के पास, स्थानीय दुकानों, पंचायतों में। और वह सभी ग्राम वासियों की कहानियाँ सुनता। लोगों की ख़ुशियाँ और दुखों के क़िस्सों में, उसने जो समझा – वह था जीवन की इतनी मुश्किलों के विषय में, जो कि होनी ही नहीं चाहिए। ख़ासतौर से महिलाओं में। उसे तब यह मालूम नहीं था, लेकिन यह अनुभव उसके भविष्य में आने वाले समुदाय-स्तरीय कार्य के लिए एक ज्वलंत सिद्धांत बन गया।
जब तक उसे ऐसा काम नहीं मिला, उसने पार्ट-टाइम काम करने का फैसला किया।
उदाहरण के लिए, 2013 में, उसने मानपुर में अमृत क्लीनिक के निर्माण का काम देखा। वह करते समय, उसने महसूस किया कि क्लीनिक का मिशन उसके स्वयं के विचार से मेल खाता है – जो है, समुदाय की सेवा करना, सम्मान और मानवाधिकारों के मूल्यों के साथ। उसकी मेहनत रंग लाई और रामलाल को नौकरी की पेशकश की गई। कई उन्मुखीकरण और प्रशिक्षण के बाद, रामलाल क्लीनिक के पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता बन गए।
उसके समर्पण ने उसे कई चीज़ें जल्दी से सिखा दी – उसने मोटरसाइकल चलाना सीखा, महिलाओं से उनके स्वास्थ्य और अधिकारों के बारे में बात करना, महिला नर्सों के साथ काम करना, पुरुषों के साथ बातचीत करना – परिवार नियोजन के बारे में, लड़का पैदा करने की चाह और लड़की की उपेक्षा करने की स्थिति के बारे में, और बहुत कुछ।
जब वह अपने बीते हुए चालीस साल देखता है, तो अमृत क्लीनिक में बिताए पिछले दस साल उसको बहुत ख़ास लगते हैं। मानपुर की घाटियों के ऊपर – नीचे के सफ़र ने न केवल उसको, बल्कि समुदाय में बिखरे हुए पेशेंट को भी, एक मज़बूत दृष्टिकोण की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। अधिक से अधिक गाँववासी अब क्लीनिक आते हैं न कि नज़दीकी भोपा (तांत्रिक) के पास जाते हैं।
रामलाल स्वयं भी इस प्रगति की मील का एक पत्थर हैं। उसके समुदाय में (देश में कई अन्य समुदायों की तरह), जहां परिवार की संपत्ति केवल पुरुष उत्तराधिकारी को दी जा सकती है और बेटी को कभी नहीं, रामलाल एक आदर्श हैं:
“मैंने अपनी बेटियों से पहले ही कह दिया है – अगर तुम अपने वैवाहिक जीवन में किसी भी कठिनाई का सामना करो, तो यह कभी नहीं सोचना कि पापा ने हमें दूर भेज दिया है और इसलिए हम उनके पास वापस नहीं जा सकते। तुम आ सकती हो, हमेशा। और तुम में से हर एक के पास अपने ख़ुद के घर की चाबियां होंगी।” |
क्या कमाल पिता है! बेटियों को घर से निकलते हुए की तस्वीर देख उसकी आंखें लाल हो गईं।
अपनी बेटियों की शिक्षा के लिये रामलाल उतनी ही मेहनत करता हैं, जितना की अपने बेटे के लिए, शायद ज़्यादा ही। इसमें वह जीवन कौशल और उस शिक्षा को भी जोड़ता है जो स्कूल प्रदान नहीं करते हैं:
“जैसे मैं क्लीनिक में करता हूं, मैं जहां कहीं भी जाता हूं मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के महत्व और जल्दी शादी व मातृत्व के जोखिमों के बारे में बात करता हूं। मैं अपनी महिला रिश्तेदारों और पड़ोसियों से भी इन मामलों के बारे में बात करता हूं।” |
अमृत क्लीनिक में नौकरी करने से पहले रामलाल ने मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के घर से बाहर सोने की प्रथा के बारे में नहीं सोचा था। उसके प्रशिक्षण के बाद, उसने अपनी पत्नी और बेटियों से कह दिया कि वे ऐसी किसी भी प्रथा को करना बंद कर दें।
बदलाव का यह जज़्बा उसके जीवन के अन्य क्षेत्रों में और उसके आसपास के लोगों में भी उतर गया। जब रामलाल को ख़बर मिली की एक ग़रीब परिवार की नवजात बेटी भूखों मरने की स्थिति में है क्योंकि उसके होंठ कटे हुए हैं, वह तुरंत उनके पास पहुँचा। उसने माँ में उम्मीद जगाई, और समय निकाल कर उस बच्ची को जयपुर ले जाकर उसकी सर्जरी कराई।

(काश हम महिलाओं और लड़कियों के आस-पास ऐसे पुरुष और होते!)
ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जो उन सुनहरी-हरी (लाल) आंखों के पीछे छिपी हैं। उसकी बातों में एक गहराई है, मानो एक इच्छा है कि उन मुसीबतों से जल्दी निपटा जाए जो उसके लोगों को ग्रसित करती है। जैसे कि महिलाओं और लड़कियों की पीढ़ियों की वह व्यथा, जो डायन और जादू-टोना का क़रार देने से अंदर तक बैठ जाती है।
मानो की उसकी ऊर्जा के जवाब में, उसकी कमीज की जेब में रखे चार पेन बाहर निकल आते हैं, परिवर्तन की एक और नई कहानी लिखने को तैयार। उसकी आंखें, उसके जोश की निशानी। और उसके पेन, उसके होश की (जागरूकता, ध्यान के लिए उर्दू शब्द)।
अमृता नंदी
13 मार्च 2023