“यहां आने के बाद मैं बिल्ली से शेर बन गई” । यह थे प्रेमिला के शब्द जिन्होंने हमे रोमांच से भर दिया।
(स्वयं के लिए एक स्मरण करने योग्य बिंदु:: वही सामाजिक जंगल जो हम महिलाओं को बिल्ली का आकार देती है, हमें शेरनी भी बना सकती है!)
इस डर से आत्मविश्वास के परिवर्तन का श्रेय, प्रेमिला अपने सामाजिक जीवन में आई अनगिनत चुनौतियों ( या कहें की, अवसरों!) को देती हैं। 26 साल घर में रहने के बाद, वह 2016 में ANM के रूप में बेसिक हेल्थकेयर सर्विसेज़ से जुड़ गई।
निठाऊवा गामड़ी (साबला, डूंगरपुर) के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से प्रेमिला को 12 किलोमीटर दूर खानान गांव के उपकेंद्र पर पोस्ट किया गया, उन ग्रामीण समुदाओं की सेवा के लिए जो PHC से बहुत दूर रहते हैं।
जब प्रेमिला खानान पहुँची तो रिपोर्ट करने पर वहाँ की स्थिति देख कर फूट-फूट कर रोने लगी । उपकेंद्र ना के बराबर उपयोग में होने के कारण, खंडहर जैसे हालत में था।
मैंने सोचा, मैं यहाँ कैसे काम करूँगी?
आस-पास के जंगल जैसा क्षेत्र को देख वह घबरा उठी। मैं अकेले नहीं सो पाती थी इसलिए गाँव की एक लड़की से रात को मेरे साथ रहने का अनुरोध किया। जब बारिश होती थी तब छत से पानी टपकता था । फिर मैं खिड़की के पास बैठकर रात गुज़ारती थी । मच्छर भी बहुत थे और बिजली भी घंटों तक गुल रहती थी।
लेकिन प्रेमिला वहीं डटी रही।
एक साल बाद, बरसात के दौरान वह निठाऊवा के PHC में रही। इसका मतलब था कि वह हर दिन उपकेंद्र जाती और वापस आती। उसके ढृढ़ समर्पण को देखते हुए, गांव के सरपंच ने उपकेंद्र में उसके काम करने की और रहने की जगह की मरम्मत में मदद की।
अब तक, प्रेमिला काम में डूब गई थी जो था उसके समुदाय के स्वास्थ्य से जुड़ा जिसमें शामिल है गीता, जो खानन की निवासी हैं। तीन बच्चों की माँ, 25 वर्षीय गीता बिस्तर पर पड़ी थी। एक साल पहले उसके पति की टी. बी के कारण मृत्यु हो गई थी।
मैंने तुरंत PHC में गीता की जांच कराई। जैसा कि मुझे शक था, उसे भी टीबी थी। मैं जल्द से जल्द उसकी दवा शुरू करना चाहती थी लेकिन गीता इस स्थिति में नहीं थीकी रोजाना इंजेक्शन के लिए उपकेंद्र पर आ सकें इसलिए, मैंने कई हफ्तों तक हर दिन उसके घर जाने की इच्छा जताई। मैं खुद तैयार हो गई हर दिन उसके घर जाने के लिए। यह सिलसिला कई सप्ताह तक चला।
लंबे इलाज के बाद गीता की हालत में सुधार आया। वह एक लम्बी लकड़ी को छड़ी के रूप में लेती और धीरे धीरे रुकते हुए सब सेंटर आती। अगर वह मर गई होती (और वह लगभग मर ही तो गई थी), तो तीनों बच्चों ने अपने एकमात्र जीवित संरक्षक को खो दिया होता। मुझे बहुत अच्छा लगा की उसने यह कर दिखाया!
जब COVID की आपदा आई , तब गीता और उनके बच्चों के पास जीवित रहने के लिए बहुत कम खाना था। बेसिक हेल्थकेयर सर्विसेज के ज़रिये प्रेमिला ने उनके लिए आटा, तेल, दाल आदि की व्यवस्था कराई। इस तरह के काम ने प्रेमिला के अंदर कुछ बदल दिया।
ANM होना अब केवल एक नौकरी ही नहीं थी, बल्कि एक जज़्बा और बहुत ही कीमती पहचान बन गई थी।
उसके काम और खानन में मौजूद होने से, 2018 में वहाँ पर डिलीवरी की सुविधा भी स्थापित हो गई।
कहने का यह मतलब बिलकुल नहीं कि सब कुछ आसान हो गया।
2020 में जैसे ही COVID शुरू हुआ, गाँव के लोगों में संदेह और डर की भावना जाग गई टीके के बारे में और अस्पताल में बंद कर दिए जाने के बारे में। यह संदेह और डर प्रेमिला की ओर भी था क्योंकि वह COVID केसेज़ पर निगरानी रखती थी और रिपोर्ट करती थी।
उपकेंद्र पर लोग आने बंद हो गए । तब मैं राशन की दुकान पर जाकर बैठ गई, लेकिन उन्होंने राशन लेना भी बंद कर दिया। काफी समय के बाद, प्रेमिला स्थानीय प्रशासन की मदद से प्रेमिला परिस्थिति को बदलने में सफल हुई ।
चुनौतियां। चुनौतीपूर्ण मौक़े जारी हैं।
प्रेमिला चार गांवों की ANM है ऐसी जगह जहाँ का इलाका पहाड़ी हैं और जहाँ सार्वजनिक परिवहन के साधनों की भी कमी है। उसे अक्सर कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। रविवार के आते, वह 60 किलोमीटर की दूरी पार करती है, चार टेंपो बदल कर अपने परिवार के साथ अपनी छुट्टी बिताने के लिए।
शुक्र है, 35 वर्षीय प्रेमिला के घर पर हाथ बटाने के लिए लोग हैं – उसके माता-पिता और पति जिन्होंने उसके बेटे की परवरिश करी। बहुत धन्यवाद हमारे जीवन में सहायता और सपोर्ट करने वाले पुरुषों के लिए!
जब उन्होंने ANM की ट्रेनिंग ली तब उनका बेटा छोटा था।
आज वह 16 वर्ष का है। वह उसे पालने के लिए समय नहीं दे पाई लेकिन उन्होंने एक पूरे समुदाय के स्वास्थ्य के पैमाने को बढ़ा दिया । और अभी भी काम में कई चीज़ें पूरी करनी है — जैसे ग्राम वासी और भोपाओं के साथ पैरवी करना, के PHC में इलाज लेने के लिए, और ऐसे लोग जो की खान–पीन में रोक लगाते है, पुलिस के समान (जैसे कि, सास) उनके साथ संवाद करना– जो गर्भवती महिलाओं को दूध, दही या चावल का सेवन करने से मना करती हैं।
प्रेमिला के लिए, उसके जीवन में नुक़सान से कई अधिक सफलताएं हैं।
“मैं बहुत कमज़ोर हुआ करती थी, आसानी से रो देती थी। लेकिन यहाँ काम करते करते मैं बहादुर हो गई हूँ! मैं अब कहीं भी आवाज़ उठा सकती हूँ । मेरे पति यह नया अवतार देख कर आश्चर्यचकित होते हैं । और खानन के लोगों का कहना है कि मेरी उपस्थिति उनके लिए बहुत ही मददगार रही है।”
केवल सबसे अच्छी नौकरियां, सबसे अच्छे काम ही हमारे उत्साह और हमारे स्वयं में ऐसे निखार ला सकती हैं!
उस शाम जब हम निठाऊवा से रवाना हुए, एक तेंदुआ सड़क के पार तेज़ी से भागते दिखी। उत्साहित होकर ड्राइवर हीरालाल जी और मैंने एक दुसरे के हाथ पे ताली बजाई!
उन्होंने उस दिन एक शेर देखा था, पर मैंने दो।
अमृता नंदी
मार्च 20, 2023