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छरहरे बदन ओर छोटी कद-काठी वाली रत्नी बाई, सिर पर सामान लादे, पचास मीटर की ऊँचाई फ़र्राटे से चढ़ जाती है। घुमावदार पहाड़ी पथ पर तकरीबन दस मिनट और चलने पर हम फुलवारी तक पहुँच जाते हैं। फुलवारी अरावली की गोद में बसी मोरवल पंचायत की हाथिया तलाई ढ़ाणी में है। कच्ची झोंपड़ी में चल रही इस फुलवारी की स्थापना बेसिक हैल्थकेयर सर्विस ने की है। कुछ दिनों पहले ही रत्नी का अचानक गर्भपात हो गया था। काफ़ी खून बहने से रत्नी को कमज़ोरी भी आई, पर उसका आत्मविश्वास नहीं डिगा – यही तो रत्नी की ख़़ासियत है।
रत्नी तीस वर्ष की है। पाँच बच्चों की इस माँ ने ज़िन्दगी में आने वाली बाधाओं के सामने घुटने नहीं टेके। बारह साल की कच्ची उम्र में रत्नी ने अपनी माँ को खो दिया था, पर सच पूछें तो माँ का शोक मनाने का समय उसे अब तक नहीं मिल सका है। माँ के बाद घर-बार की ज़िम्मेदारी उठाने के साथ ही, उस चार सदस्यों वाले अपने परिवार के लिए इकलौती कमाने वाली भी बनना पड़ा था। उसी कच्ची उम्र में वह अपने दो छोटे भाईयों की दूसरी माँ भी बनी, जिसमें एक तो महज महीने भर का था। वह उसे टोकरी में रख स्कूल ले जाती, और तब पढ़ पाती जब वह सो जाता। परिवार को स्नेह-प्रेम देते, सबकी देखभाल करते और आर्थिक ज़िम्मेदारी उठाते-उठाते बचपन में संजोए उसके निजी सपने, उसकी पढ़ाई-लिखाई, पीछे छूट गई। रत्नी पाँचवीं कक्षा के आगे प़ढ़ न सकी।
पाँच साल पहले अपने पड़ौस के गाँव मोरवल में अमृत क्लिनिक से उसका परिचय हुआ। रत्नी का पति उस समय बीमार था, सो वह क्लिनिक के निर्माण में सहायक के रूप में मज़दूरी करने पर मजबूर हुई। उसे वहाँ कारीगरों (मिस्त्रयों) को सीमेंट का मिश्रण, उनके औज़ार पकड़ाने पड़ते और काम पूरा होने पर सफ़ाई करनी पड़ती। काम कठिन और कमरतोड़ू था और मज़दूरी कम।
पर यह आखिरी बार था की रत्नी ने ऐसा काम किया। उसकी ढाणी में फुलवारी जो खुल गई। बीएचएस के सामुदायिक कार्यकर्ता रमेश जी से क्लिनिक में हुई अपनी मुलाक़ात को याद करते हुए रत्नी ने बताया, कि उन्होंने ही फुलवारी के बारे में बताया था, और उसे फुलवारी कार्यकर्ता बनने को प्रेरित भी किया था। रत्नी अनिश्चित थी, पर उसने झिझक के बावजूद हामी भरी। तब से रत्नी ने पलट कर नहीं देखा है।
रत्नी को फुलवारी का काम गहरा सन्तोष देता है। उसने तमाम नई चीज़ें सीखी हैं। इस काम ने उसे न केवल एक पहचान और नई जानकारियाँ दी हैं, बल्की अपनी कभी न खत्म होने वाली घरेलू ज़िम्मेदारियों और तनावों से कुछ वक़्त के लिए राहत भी। रत्नी बताती हैं, ‘‘मैं जैसे ही फुलवारी में आ बच्चों के साथ खेलती हूँ, अपनी चिन्ताएँ भूल जाती हूँ। मुझे उनका साथ पा खुशी मिलती है।’’ बच्चों के पनपने-सीखने की ऐसी सुरक्षित जगह में रत्नी की गहरी आस्था है।
‘‘मुझे लगता है कि फुलवारी बच्चों में आत्मविश्वास जगाती है, उनकी बुनियाद को पुख़्ता करती है। उनके साथ हम जो खेल और गतिविधियाँ करते हैं, वे उनकी मानसिक विकास में मददगार होते हैं।’’ |
पर फुलवारी की शुरुआत करना आसान न था। रत्नी याद करते हुए कहती हैं कि आरंभिक बारह महीने तो एक दुःस्वप्न से ही थे। ‘‘बच्चे खूब रोते, उनके माता-पिता खाने की शिकायत करते, यह सोचते कि उसे खाने से उनके बच्चे बीमार हो जाएंगे।’’ अथक कोशिश, धीरज और कटिबद्धता, माता-पिता और ग्राम अधिकारियों के साथ नियमित बैठकों द्वारा ही रत्नी और उनकी टीम समुदाय का विश्वास जीत सकी।
रत्नी के काम में फुलवारी आने वाले बच्चों के माता-पिता के साथ मासिक बैठकें भी शामिल हैं। इन बैठकों में वे गर्भ-निरोधक साधनों, मलेरिया और क्षय रोग से बचाव और दूसरे कई मुद्दों पर चर्चा करती हैं। उस सबकी जो उन्होंने बीएचएस के प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने सीखा था। अमृत क्लिनिक के साथ इस जुड़ाव ने रत्नी को तो बदला ही है, उसके परिवार में भी भारी बदलाव आया है। वह अपने शरीर का, साफ़-सफ़ाई का पूरा ध्यान रखती है। उसके पति के व्यवहार को बदलने में भी उसने मदद की है। ‘‘पहले मैं हर दिन नहीं नहाती थी। घर और खेत के कामों में उलझी रहती थी। पर जब से फुलवारी में काम करने लगी हूँ, मुझे साफ़-सफ़ाई की अहमियत समझ आने लगी है। मैं अपना ख़याल रखती हूँ। मैंने अपने पति को शराब छोड़ने को भी प्रोत्साहित किया है ।’’
समुदाय में बढ़ती रत्नी की साख ने उसके पति को नाराज़ नहीं किया है। बल्की वे उसका सहयोग करने लगे हैं। वे घरेलू कामकाज में भी हाथ बंटाते हैं, जिसका कोई भुगतान नहीं मिलता।
‘‘मेरा पति लोगों के सामने भी मेरी तारीफ़ करता है। उन्हें कहता है कि मैं बहुत जानकार हूँ और लोगों को मुझसे सीखना चाहिए। उसे मेरे काम पर फ़क्र है।’’ |
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रत्नी को अपने जीवन में ऐसे लोग कम ही मिले हैं जिन्हें उस पर यक़ीन था, सिवा उसकी स्कूल टीचर के। रत्नी उन्हें बड़े स्नेह से याद करती है। वह अपनी ढ़ाणी की औरतों की हर तरह से मदद करना चाहती है। वह उन्हें अपने शरीर के बारे में बातचीत करने, और ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सा सेवा लेने को प्रोत्साहित करती है।
जीवन के छोटे-बड़े संघर्षों का सामना कर रत्नी ने ताकत पाई है। इसी ताकत के सहारे आज वह अपने परिवार और समुदाय को जोड़ सकी है। उसका सपना अब यह है कि उसका बेटा शिक्षक बने और बेटी डॉक्टर! यह पूछने पर कि उसे अपनी ताकत कहाँ से मिलती है, वह बेझिझक जवाब देती है, ‘‘अपने दिल से!’’
द्रिष्टि अग्रवाल
मार्च 16 , 2023