धधकती और चकाचौंध करती सड़कों से बहुत दूर, जैसे-जैसे पहाड़ियों की चढ़ाई और ढलान आती जा रही थीं, जंगलों और झरनों ने खजूर के पेड़ों से भरे एक समतल जगह को रास्ता दे दिया। यह रावछ था, जो आदिवासीयों द्वारा बसा एक दूरदराज स्थित गाँव है। उदयपुर की गोगुन्दा तहसील में है। एक व्यक्ति अपने गाँव से (जो कोटड़ा तहसील में है) 50 किलोमीटर का सफर तय कर रावछ के अमृत क्लीनिक पहुंचा था। जब तक उसका काम क्लीनिक में ख़त्म हुआ तब तक देर शाम हो चुकी थी। जैसे ही वह कोटड़ा लौटने के लिए तैयार हुआ, डॉक्टर ने सुझाव दिया कि वह रात को वहीं आराम करे और सुबह होने पर निकल जाए। आदमी ने हैरान होकर पूछा, “लेकिन मैं अपने ऊँट को क्या खिलाऊँगा?”
अब इससे स्टाफ़ हैरान हो गया।
वह आदमी अपने ऊँट पर सवार होकर रावछ के क्लीनिक तक आया था!
लोककथा ऐसे ही बनती हैं, कम्प्यूटर के और टेलीहेल्थ के ज़माने में भी।
और ध्यान रहे, यह केवल यही आदमी और उसका ऊँट नहीं था जिसने इतनी दूरी तय की थी। यह पहले अमृत क्लीनिक की प्रतिष्ठा थी जिसने इस क्षेत्र की धधकती सड़कों, ढलान वाली पहाड़ियों, जंगलों, झरनों और खजूर के रास्ते को पार किया था।
2018 में इसकी स्थापना के बाद से हर हफ्ते, गुरुवार को क्लीनिक में ‘डॉक्टर्स डे’ के दिन दूर और निकट से 130-150 मरीज़ यहां देखे जाते हैं। (हालांकि एक दिन में सबसे ज्यादा मरीजों के आने का रिकॉर्ड 190 का है)।
रावछ में क्लीनिक का यह खिंचाव कई हाथों पर टिका हुआ है जो इसे चलाते हैं और इसमें सहयोग करते हैं। 32 वर्षीय गंगा, क्लीनिक में वरिष्ठ नर्स, उनमें से एक हैं। गंगा के लिए उसकी यात्रा भी लंबी, कठिन, और फिर भी जीवनदायी है, ठीक उस शक्तिशाली नदी के जैसे जिस पर उसका नाम आधारित है।
बचपन में, उसके मूल प्रांत डुंगरपुर में, गंगा स्कूल जाने और वापस आने का 16 किलोमीटर का सफ़र पैदल चलकर पूरा करती थी। वह गाँव की अकेली लड़की थी जो उन खेतों और जंगलों में अकेले चलती थी, और नदी पार करती थी जिसका बहाव बारिश में बढ़ जाता था और उसमें बाढ़ आ जाती थी।
“सुबह 7 बजे के स्कूल के लिए मुझे 5.30 बजे घर से निकलना होता था। मेरे पिता मेरे साथ तब तक चलते थे जब तक सूरज आसमान को रोशन नहीं कर देता था। उसके आगे का सफ़र मैं अपने आप तय करती थी।” |
सार्वजनिक बस नहीं लेना, पैसे बचाने का उसका तरीका था परिवार के पास उपलब्ध (कम) राशि को बचाने के लिए। लेकिन खराब संसाधन ही एकमात्र कठिनाई नहीं थे।
“एक पुरुष रिश्तेदार ने मेरे पिता से कहा कि वे मुझे और मेरी बहन को अकेले स्कूल न भेजें। उन्होंने अपनी ही बेटी को कक्षा पांच से आगे नहीं पढ़ाया था। मेरी मां के लिए भी यह आसान नहीं था। एक अन्य रिश्तेदार ने सुझाव दिया कि परिवार की लड़कियों – मेरी बहन और मुझको घर के काम में मदद करने के लिए स्कूल से निकाल लेना चाहिए। लेकिन मेरे माता–पिता ने हमारी पढ़ाई से कभी समझौता नहीं किया।”
नन्हीं गंगा ने भी जितना कर सकती थी उतना सहयोग दिया। स्कूल जाने से पहले, वह तीन मिट्टी के बर्तनों में पानी भरने के लिए हैंडपंप पर जाती थी, जिनमें से दो उसके सिर पर रखे जाते थे – एक के ऊपर दूसरा – और एक उसके हाथ में। स्कूल से वापस आने पर वह अपने परिवार के खाने के लिए रोटियाँ बनाती थी।
तो यह गंगा भी बहती रही, फलती-फूलती रही। उसके पिता के सहयोग के कारण। जब तक उनकी बेटी के पास एक स्वतंत्र पहचान और एक सार्थक व्यवसाय नहीं था, तब तक वह आराम करने वाले नहीं थे। गंगा GNM (जनरल नर्सिंग मिडवाइफरी) डिप्लोमा हासिल कर सके, इसके लिए उन्होंने अपना खेत गिरवी रख दिया। भले ही इसके लिए गंगा को उसके घर से दूर पाली जिले में रहना पड़ा हो।
परिवार से दूर रहने और अध्ययन करने से गंगा के स्वाभिमान में निखार आया- वह आत्मविश्वासी और कभी ना हार मानने वाली बनकर उभरीं। और इसलिए, न तो शादी और न ही मातृत्व ने गंगा को अपने मिशन की तरफ़ बढ़ने से रोका – जो था एक नर्स के रूप में समुदाय की सेवा करना और अपनी शर्तों पर जीना।
फिर भी, जैसा कि नदियों और जीवन की प्रकृति में है, भँवर और चुनौतियाँ सामने आते रहते हैं।
गंगा घरेलू कामों के लिए घर पर नहीं रह पाती थी, इसलिए उसके परिवार को उसका बाहर कार्य करना स्वीकार्य नहीं था। यद्यपि गंगा ने अपने बच्चे को जन्म देने के बाद अपने काम से विराम लिया था, वह गहराई से जानती थी कि काम करने की उसकी सोच न केवल उसके लिए बल्कि उसके परिवार के लिए भी बेहतर थी। और इसलिए, अपने परिवार और पति के सहयोग से, वह 2020 में अमृत क्लीनिक में शामिल हो गईं।
इन वर्षों में, गंगा को आगे बढ़ने के कई अवसर मिले जिससे वह अपनी नर्स की ट्रेनिंग से भी आगे बढ़ गई । अपने से वरिष्ठ सदस्यों, और बहुत सी ट्रेनिंग में भाग लेने से गंगा ने बहुत सी बीमारियों के लिये जाँच करना और उनकी पहचान करना सीखा (जैसे कि ब्लड प्रेशर, हाईपरटेन्शन, ट्यूबरकुलोसिस, सिलिकोसिस, प्रसूति देखभाल, और इसी तरह अन्य)। नतीजतन, उसने और उसकी टीम ने कई गंभीर स्थितियों को संभाला है जिससे कई लोगों की जान बच गई।
इनमें से एक चिंता जगाने वाली है।
एक रात करीब 10 बजे, एक 22 वर्षीय महिला 40 किलोमीटर दूर अपने गांव से रावछ क्लीनिक पहुंची। वह प्रसव पीड़ा से कराह रही थी इसलिए स्टाफ़ को लगा कि यह प्रसव पूर्व की ही सामान्य स्थिति है। लेकिन जब गंगा ने उसकी जांच की तो वह भयभीत हो गई। बच्चा फंसा हुआ था, आंशिक रूप से बाहर, और गर्भाशय फटा हुआ था।
पता चला कि गांव की दाई ने बच्चे को ज़ोर लगा कर निकालने की कोशिश की थी, लेकिन वह फंस गया। इसके बाद महिला को एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। वहां मौजूद स्टाफ ने भी मामले को पेचीदा देख महिला को लौटा दिया।
गंगा ने तुरंत वीडियो कॉल के जरिए उदयपुर के एक वरिष्ठ चिकित्सक से संपर्क किया। जल्द ही, कुछ अन्य विशेषज्ञ एमरजेंसी परामर्श में शामिल हो गए। क्लीनिक की अन्य नर्सों की मदद से, गंगा कॉल पर डॉक्टरों के निर्देशों का पालन करने के लिए जुट गई। लेकिन स्थिति की गंभीरता और नाजुकता ने गंगा को चिंतित कर दिया। ख़ुद को शांत और स्थिर करने के लिए वह वहां से हट गई और कुर्सी पर जा कर बैठ गई। कुछ ही मिनटों में, वह अपने आप को तैयार कर वापस आ गई, अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के निश्चय के साथ। और इसके अच्छे परिणाम हुए – प्रसव सफल रहा, बच्चा स्वस्थ, और माँ सुरक्षित थी।
प्रसूति के एक अन्य आश्चर्यजनक मामले में गर्भवती मां का हीमोग्लोबिन लेवल 4 था जो कि बहुत कम था। गंगा की प्रसव से पहले और बाद की देखभाल और तकनीक की बदौलत बच्चे का जन्म सुरक्षित और 2.9 किलोग्राम वजन के साथ हुआ।
जैसे गंगा नदी जिस भूमि से गुजरती है उसे समृद्ध करती है, उसी प्रकार गंगा की यात्रा भी है। क्लीनिक में काम कर रही, और यहाँ पर आ रही महिलाओं, के साथ वह अपनी सीख साझा करती हैं और उनसे खुल के बोलने का आग्रह करती हैं। उसके ससुराल पक्ष को काम करने की उसकी पसंद पर गर्व है, और उसका छह साल का बेटा अपनी माँ के साहस से बल प्राप्त करता है।
यह कहते हुए गंगा मुस्करा उठती है, “मेरी मां मुझसे कहीं ज्यादा मेरी बहन से बात करती है। तो मैंने एक बार उनसे शिकायत की कि वह मुझसे कहीं ज्यादा मेरी बहन को प्यार करती है। मेरी मां का जवाब था, “मुझे तेरी कोई चिंता नहीं है। मुझे पता है कि तू हर स्थिति में ठीक रहेगी।” |
अमृता नंदी
8 मार्च 2023